पिछले 65 सालों में एक गरीब देश से विकासशील देश की सीमा में पहुंचने और विकसित देश कहलाने की बॉर्डर लाइन छूने की कोशिश करता हमारा आजाद भारत बहुत बदल चुका है. कैरोसीन लैंपों की जगह घर-घर बिजली पहुंच गई है, बैल गाड़ियों की जगह मॉडर्न फोर व्हीलर्स ने ली है, रेलों की जगह लोग मेट्रो रेल के मजे ले रहे हैं, इससे भी आगे मोनो रेल से और तेज भागने की बाट जोह रहे हैं और बहुत कुछ जो 65 साल पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी आज हमें आधुनिक बना रहा है. लेकिन इन सबमें सबसे बड़ी बात हमारा आधार ‘लोकतंत्र’ है. 65 साल पहले बड़ी मुश्किलों से पाए इस लोकतंत्र को हम हर कदम मजबूती से थामे आगे बढ़ रहे हैं और आगे बढ़ेंगे. 1951 के चुनाव में मात्र 40 प्रतिशत वोटिंग हुई थी उसमें भी बुजुर्गों की संख्या ज्यादा थी.
आज यह प्रतिशत इतना बढ़ चुका है कि 2014 के चुनाव में अकल्पित रूप से 81.45 करोड़ वोटर्स में से 10 करोड़ नए युवा वोटर्स चुनाव में हिस्सा लेंगे. बूढ़ों की समझ और इंटेरेस्ट मानी जाने वाली राजनीति अब मस्ती-मजाक पसंद करने वाले युवाओं और मस्ती-मनोरंजन का हिस्सा रहने वाले सोशल मीडिया पर भी छा गई है. हम कह सकते हैं हमारा यह लोकतंत्र 65 साल की उम्र में 100 साल की समझ पा रहा है. पर क्या कभी आपने सोचा है कौन होगा जिसने इस लोकतंत्र की आहुति में अपना पहला मतदान किया होगा और 65 सालों बाद क्या वह जिंदा होगा. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पहला भारतीय वोटर भी युवा ही था और आज भी किसी जगह गुमनाम लेकिन गर्व की जिंदगी जी रहा है. देखें वीडियो:
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